Jaane Kahaa ??? The Revolution
अपडेट 15
रामेश्वर एक औषधी ऐसी बनाता था जिस के सेवन से एक जवामर्द, जिसे हर दिन अपनी हवस पूरी करने के लिए कोई ना कोई चाहिये ही, ऐसे आदमी को चंद मिनिटो मे सेक्स्च्युअली नर्वस बना दे, जो प्रिन्स खा चुका था।
लेकिन एक ऐसी भी जादूगरी रामेश्वर के पास थी। जो कामोत्तेजक, और किसी पुरुष के लिए फायदेकारक का काम करती थी। उस औषधि मे ब्लॅक मुसली, और वाइट मुसली ऐसे नाम की आयुर्वेदिक वनस्पति का मिक्स्चर होता है। उस मिक्स्चर को गाढ़े दूध मे उबालकर ठंडा किया जाता है। जब वो मिक्स्चर गाढ़ा मीन्स रबड़ी जैसा बन जाये और पूरा ठंडा होने से पहले अगर कोई मर्द उसे पी ले और बाद मे एक निश्चित समय पर दोनो पति-पत्नी बच्चा चाहे तो रिज़ल्ट निश्चित हो सकता है। क्यूकी वो मिक्स्चर मे इतनी ताक़त है की पुरुष के शुक्राणु मे करोड़ो की मात्रा मे वृध्धी करता है। ऐसा मिक्स्चर साप्ताह मे केवल एक बार सेवन करने से निसंतान कपल के यहा संतान प्राप्ति की सम्भावना 99% बढ़ जाती है (ये माहिती
केवल कहानी तक सिमीत नही है)। कुदरत ऐसी औषधिया मनुष्य कल्याण के लिये निर्माण करता है
लेकिन कुछ लोग इस का दुरुपयोग भी करते है।
विक्रम ने रामेश्वर के पास से सिर्फ़ प्रिंस को काम आये वैसी होने की औषधि ही ली थी लेकिन उसने तीन चार डोज़ माँगे थे। क्यूकी पता नही कब प्रिन्स क्या कर जाये। रामेश्वर ने भी तीन चार ही दिये थे। लेकिन ग़लती से वो मिक्स्चर दे दिया था। दोनो रंग रूप मे एक जैसे थे। दोनो को दुध के साथ
लिया जाता था। एक आप कभी पी सकते थे लेकिन ये दुसरावाला मिक्स्चर को दूध के साथ ही लेना था। अब शराब के बाद कोई आदमी दूध पीता नही। लेकिन रामेश्वर की सुचना थी की शराब लेने से पहले ही इसका इस्तेमाल कर दिया जाये। जब प्रिन्स को दूध दिया गया तभी उसका मूड शराब पीने का है। विक्रम धर्मसंकट मे आ गया। क्यूकी अभी तक प्रिन्स केवल क्रिष्ना को छु पाया था आगे कुछ करने से पहले ही वो औषधी काम कर जाती थी और क्रिष्ना अभी भी बची हुयी थी।
आज अगर प्रिन्स दूध नही पीता है तो क्रिष्ना मर जायेगी, ये पता चलते ही विक्रम ने दो दूध के ग्लास बनवाये थे। जहा वो ठहरे थे उस कोठी मे इंग्लीश नौकर था और उसकी बेटी को सर्व करने के लिये बोला गया और सुचना दी गयी की एक ग्लास मे पहली औषधी का डबल डोज़्ज़ दिया जाये। लेकिन वो इंग्लीश लड़की हिन्दी कम और इंग्लीश ज़्यादा समजती थी। कुछ कम्यूनिकेशन गेप हो गया और उसने दोनो ग्लास मे एक एक पेकेट डाल दिया। फ़र्क सिर्फ़ इतना था की प्रिन्स का दूध मे दूध ही रहा और विक्रम के ग्लास मे रबड़ी जैसा गाढ़ा दूध बन गया।
जब इंग्लीश लड़की सर्व करने आई, प्रिन्स उसको देखता ही रह गया। जब विक्रम ने देखा की एक नॉर्मल दूध है और दूसरा रबड़ी जैसा है तो उसने हर बार दूध ही मे औषधि को देखा था तो वो दूध का ग्लास प्रिन्स को दे दिया और खुद ने वो राबड़ी जैसा दूध का सेवन किया। फिर दोनो ने शराब पी। प्रिंस इस नाउ आउट ऑफ सेन्स एन्ड विक्रम बिकम इज़ नाउ स्ट्रॉंग स्ट्राइकर।
जब क्रिष्ना को बुलाया गया और उसने प्रिन्स के सामने एक के बाद एक कपड़े खोलने शुरू किए। विक्रम बाहर बैठा
नजारा देख रहा था और ऐसा नज़ारा विक्रम कई बार देख चुका था की प्रिन्स के आउट हो जाने के बाद कृष्णा को छुप छुप के कई बार उसने देखा था, लेकिन कभी भी उसे टच नही किया था क्यूकी ये उन दोनो के बीच एक मौखिक अग्रीमेन्ट था की दोनो की चाल थी सिर्फ़ प्रिन्स के लिये, उसमे कभी भी विक्रम को क्रिष्ना का फ़ायदा नही उठाना था। इसीलिए कई बार जब क्रिष्ना को शराब पीला के प्रिन्स आउट कर देता था तो विक्रम उसे कपड़े पहनाकर वापस लाता था, लेकिन कभी भी उसने अपनी मर्यादा तोड़ी नही थी। वैसे भी पहले क्रिष्ना इतनी अट्रॅक्टिव नही थी।
लेकिन आज कृष्णा को विदेश का गोरापन लग चुका था। विदेशी ठंडी के मौसम मे आप के जिस्म की चरबी बढ़ जाती है। पतली क्रिष्ना आज गठरीली बन चुकी थी। जब प्रिन्स टोटली आउट हो गया तो क्रिष्ना ने वापस अपने सारे कपड़े पहने और बाहर निकली। बाहर के रूम मे विक्रम बैठा था, उसके सामने जाकर वो बैठ गयी।
अगर चुपचाप वहा से चली जाती तो शायद इतिहास नही बनता, लेकिन आज उसे भी दर्द महसूस हुवा था, क्यूकी वादे के अनुसार विक्रम उसका होनेवाला पति था लेकिन विक्रम ने आज ही बताया था की वो किसी और से प्रेम करता है। यहा विदेश मे क्रिष्ना के तुटे हुये दिल का सहारा भी विक्रम ही था। लाख कोशिश के बाद भी क्रिष्ना की आँखो ने आँसू बहा ही दिये। विक्रम पुरी तरह डबल नशे मे था और क्रिष्ना
की आखो मे आँसू देखकर क्रिष्ना को सिर पर हाथ लगाने लगा। लेकिन अभी अभी 10 मीनीट पहले कृष्णा का जिस्म देख चुका था। आज तो उसकी हालत उस दिन से भी ज्यादा खराब थी जिस दिन क्रिष्ना की इंडिया की आखरी रात थी।
क्रिष्ना को विक्रम का हाथ सिर पर महसूस होते ही रो पड़ी क्यूकी आज वो सचमुच बेसहारा हो चुकी थी। एक लड़की ही जानती है जब उसका दिल तुट जाता है। वो धीरे से विक्रम से लिपट गयी और रोने लगी, लेकिन क्रिष्ना का जिस्म का पहला एहसास विक्रम को हो रहा था। औषधि और जिस्म दोनो ने अपना जलवा शुरू कर दिया और विक्रम पे मदहोशी छा गयी।
विक्रम पर क्रिष्ना के जिस्म ने जादू कर दिया। उसके हाथ अपने आप ही कृष्णा के कंधो पे चलने लगे। धीरे धीरे हाथ कंधो से नीचे उतरकर पीठ पे चले गये और बाद मे सरककर पीठ तक पहुच गये। क्रिष्ना अपने गम मे इतनी डुबी हुई थी की विक्रम से लिपटकर अपना पूरा मन खुला कर के रो रही थी। विक्रम का बुखार बढ़ता ही चला गया । वैसे वो औषधी से कभी मदहोशी नही छाती थी, लेकिन विक्रम के दिमाग पर शराब और शबाब का नशा था उपर से विदेश की मौसम और शाम का माहोल था। वो औषधि तो सिर्फ़ पुरुष के शुक्राणु बढाता था,मगर शबाब का नशा इस से बढ़कर होता है।
विक्रम की सहन से बाहर हो गया तो उसने लपक कर क्रिष्ना को बेड पर डाल के दबोचकर क्रिष्ना के होटो को काटना चालू कर दिया। अचानक हमले से क्रिष्ना पहले तो कुछ समज ही नही पाई की उसके साथ क्या हो रहा है लेकिन फिर समज मे आया की उसके जिस्म का नशा विक्रम के सिर पर सवार हो चुका है। पहले तो उसके बॉडी ने रिएक्ट ऐसा किया की अचानक विक्रम के बॉडी का पूरा हिस्सा उस पर आ गया ।
क्रिष्ना ने विदेशी ड्रेस की आदत मुश्किल से डाली थी और विक्रम के कहने पर ही उसने फॉरिन लेडी की तरह घुटनो तक का लंबा स्कर्ट पहना था। स्कर्ट ब्राउन कलर का था और बार्बी डॉल जैसा घूमता था। उपर से गर्डल मे गाँठ पड़ी हुई थी और स्कर्ट की ज़िप पिछे थी जो पीठ से लेकर कमर तक लंबी थी। विक्रम के उपर आने से क्रिष्ना जो रो रही थी, उस से लाल कलर की लिपस्टिक का रंग बिखरने लगा। क्रिष्ना के हाथो ने इनकार मे रिएक्ट किया लेकिन खुद क्रिष्ना की मानसिक स्थिति अच्छी नही थी और क्रिष्ना को विक्रम मे अपना तारणहार नज़र आ रहा था। पिछले कई महीनो से वो बिल्कुल अकेली थी, उसका कोई सहारा नही था। वो खुद तो रो रो कर बेहाल हो चुकी थी, उसके जिस्म की गरमी तो कब की ठंडी हो चुकी थी। लेकिन जब विक्रम ने जोरो सोरो से उसको काटना शुरू कर दिया तो क्रिष्ना के दिमाग पे कोई सहारा महसूस हुवा और वो खुले मन करके रो कर विक्रम से लीपट गयी। लेकिन उसके रोने का कोई असर विक्रम की मदहोशी पे नही हुवा। विक्रम मदहोशी मे होटो से शुरू कर के धीरे धीरे कृष्णा को आँखो पर, गालो पर, गले पर और गले से नीचे उतर चुका था। क्रिष्ना की आँखो से आँसू की धारा बह जा रही थी लेकिन आज मानो उसे कोई अनजाना साथी मिल गया हो और जैसे एक नयी दुल्हन अपनी सुहगरात मे अपने पति के समर्पण को तैयार रहती है तब उसे दर्द नही रोमांच होता है वैसा ही कुछ क्रिष्ना महसूस कर रही थी।
एक न्यू मॅरीड दुल्हन जब बिदाई के वक़्त रो रो के अपना हाल बेहाल कर देती है और फिर अभी ससुराल पहुचने से पहले ही अगर सुहागरात का मौका आ जाये तो उसकी हालत क्या होती है। एक तरफ अपने बाबुल का घर छोड़ने का दर्द और दूसरी तरफ अपने पति का परम सुख का पहला एहसास। दोनो स्थिति के बीच की स्थिति यही होती है की वो दुल्हन सिर्फ़ समर्पण करती है। उसका दिमाग अपने माइके और पति के साथ के बीच भटकता रहता है ।
कुछ वैसी ही हालत क्रिष्ना की थी, उसके हाथ ने अपने आप ही विक्रम की बाहे थाम कर साथ देना शुरू कर दिया। क्यूकी प्रिन्स सिर्फ़ उपयोग करना जनता था लेकिन विक्रम को तो वो प्यार करती थी और आज उसका प्यार ही प्यासा बनकर आया था। क्रिष्ना की आँखो से अब सहारा मिलने की खुशी के आँसू बहने लगे और विक्रम को पूरी आज़ादी मिल गयी।
क्रिष्ना ने इस कटु वास्तविकता को स्वीकार कर के आँखे बंध कर ली। जब विक्रम उसे कई जगह पर काट रहा था तब सब से पहेले तो क्रिष्ना के लिये दर्द गायब था और मीठा स्पंदन भी गायब था। वो शून्य हो गयी। क्रिष्ना का जिस्म बिल्कुल ठंडा हो चुका था। मानो कोई मर्द एक लाश के साथ मजे कर रहा हो ऐसा महसूस हो रहा था। विक्रम को नशे मे भी एक तरफ़ा प्यार मे मज़ा नही आ रहा था और वो क्रिष्ना के बदन पर से खड़ा हुवा और हाथो मे सख्ती से क्रिष्ना के हाथ पकड़े रखे थे और कृष्णा को देखने लगा। बिखरी बिखरी कृष्णा को देखकर उसे और ताव आया और उसने क्रिष्ना को फिर दबोच लिया और क्रिष्ना खुली आँखो से अपने आप को लूटते हुये देख रही थी। कड़वी वास्तविकता से उसे हसी आ गयी और उसने फिर आँखे बंध ली। कुछ देर बाद क्रिष्ना को एह्साश हुवा की विक्रम उस के साथ क्या करने जा रहा है। वो तो समर्पण करने को तैयार थी, मजबुरी से लेकिन विक्रम जिस तरह उस के साथ खेल रहा था वो कोइ पति-पत्नी वाला प्यार नही था। ये एक तरह से
बलात्कार हो रहा था और क्रिष्ना ने जोर से विक्रम को उठाना चाहा और विक्रम जैसे ही करवट बदलने गया क्रिष्ना खडी हो गइ। लेकिन विक्रम ने फिर से उसे पकड लिया और अपने हाथो से क्रिष्ना को बेड पर गीरा दिया।
क्रिष्ना जैसे बेड पर गिरी और वो हाफने लगी। अब उसे दर्द का एहसास शुरु हुवा क्युकी क्रिष्ना के होटो काटने की वजह
से पीडा शुरु हो चुकी थी इस के अलावा शरीर के अन्य भाग पर भी धीरे धीरे एहसास
जागने लगे थे। पहेले उसे ख़ालीपन महसूस होने लगा और आँखो के सामने अंधेरा छाने लगा और उसके मूह से धीरे धीरे चीखे चालू हुई और विक्रम को रोकने के लिये हाथ उठाने गयी। लेकिन ताक़त कम पड गयी और विक्रम ने फिर उसे दबोच लिया। थोड़ी देर विक्रम रुका तो क्रिष्ना ने इशारे से समजाने की कोशिश करी की अब वो असमर्थ हो चुकी है। लेकिन विक्रम नही माना और क्रिष्ना की आँखो के सामने बिल्कुल अंधेरा छा गया और बाद मे उसे कुछ पता नही था की उसके साथ क्या हुवा।
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इतना कहकर क्रिष्ना थोड़ी रुकी, नीची नज़र रखते हुये थोड़ी देर चुप बैठी रही फिर खड़ी हो के पानी पी के वापस आ गयी, मिट्टी के खिलोने से खेलते हुये दोनो बच्चो को देखने लगी और फिर अचानक मुस्कुराइ और नज़र उठाके राजेश्वरीदेवी के सामने देखा और फिर बोल उठी,’’मेरी किस्मत मे घर ग्रहस्थी बसाना नही लिखा है भाभी, शायद हम दोनो भाई बहन अपने पिताजी का किया भोगत रहे है। हम पिताजी को भी दोष नही दे सकते क्यूकी उसने जो भी किया हमारे लिये किया। बडे भैया उसके घर मे नौकरो की ज़िंदगी इसीलिए बिता रहे है क्यूकी हमारा सौदा हुवा था की मै फॉरिन मे सेइफ रहु। जब की बडे भैया की कुरबानी की कीमत कोडियो के दाम बिक गयी और मेरी जवानी आख़िर बलि चढ़ ही गयी। ’’
इतना कहकर फिर उसने नज़र जुका दी। राजेश्वरीदेवी देवी ने हाथो से उसके कंधे को फुसलाया और पुछा,’’लेकिन बाद मे क्या हुवा क्रिष्ना ? तूने कभी विक्रम भैया को क्यू नही बताया की ये बच्चा उस शाम की देन है जिस दिन उन्होने तुम पर ये कदम उठाया था।’’
’’मै विक्रमबाबू को आप से ज़्यादा जानती हू भाभी, अगर कहती तो वो क्या मानते की ये बच्चा उसका है। उल्टा शायद मेरे बच्चे की जान ख़तरे मे होती।’’ कृष्णा ने राजेश्वरीदेवी की आँखो मे आँखे डालकर हिम्मत से जवाब दिया।
राजेश्वरीदेवी उसकी आँखो की चमक देखकर अपनी आँखे मिचकर उसकी बातो की पुष्टि की और फिर पुछा,’’लेकिन तू कम से कम उसे याद तो दिला की ये बच्चा कैसे इतना बड़ा हुवा।’’
’’भाभी मेरा जवाब भी इसी सवाल मे है की कैसे बताउ की ये उसका बच्चा है, मेरे पास क्या सबूत है की उसने वो शाम मेरे साथ गुजारी है।’’कृष्णा ने जवाब दिया।
’’ठीक है हम याद दिलायेंगे विक्रमभैया को । आप की निशानी यही जोधपुर मे साँसे ले रही है।’’ राजेश्वरीदेवी बोली।
’’भाभी उसे कुछ याद नही है, क्यूकी भैया ने उसे याद दिलाने की एक बार कोशिश की थी इन सात दीनो मे, लेकिन उस दिन वो नशे मे थे और उसने मेरे साथ जो कुछ भी किया वो कुछ उसे याद नही है, वरना भैया को सब पता लग जाता ना और आप लोगो को यहा बुलाने की जरूरत ही नही होती।’’ क्रिष्ना की आँखो की चमक और तेज हो गयी।
’’तू तो याद दिला सकती थी ना की तुजे डर है?’’राजेश्वरीदेवी ने पुछा।
’’कैसे बताती, मूज़े भी तो होश मे होना चाहिये था ना उस वक़्त।’’ क्रिष्ना बोल उठी।
‘’क्या मतलब ?’’राजेश्वरीदेवी ने फिर पुछा।
‘’भाभी, उस रात मे बेहोश हो चुकी थी
और मुज़े रात को
करीब 10 बजे होश आया था और मैं यू ही बिना कपड़ो के प्रिन्स के कमरे मे थी और वहा का नौकर मेरे बदन को चूम रहा था। ये तो अच्छा हुवा उसकी बेटी का की उसने लात मार के अपने बाप को मेरे शरीर उपर से दूर किया वरना मै दुसरे बलात्कार से नही बचती।’’ क्रिष्ना बोल उठी।
‘’क्या? विक्रमभैया और प्रिन्स दोनो वहा नही थे ?’’राजेश्वरीदेवी ने पुछा।
‘’नही, भाभी, उन दोनो को नशे की हालत मे वहा से ले जाया गया था और ले जाने वाला वो नौकर ही था और मेरे शरीर के नीचे केवल खुन ही खुन था। मै चल भी नही पा
रही थी। फिर भी जब मै लड़खड़ाती अपने कपड़े पहन कर उसी रूम मे गयी जहा विक्रमबाबू के साथ थी तो मैने देखा की पूरा बिस्तर लहुलुहान था और मेरे पैरो के बीच खून के दाग गड़े हुये थे। बाद मे कोठी से बाहर नीकली तो उन दोनो को मूज़े मिलने नही दिया गया और मूज़े रोड पर अकेला छोड़ दिया गया। जब तक मै अपने आप को होश मे लाती और मेरी स्फूर्ति वापस आती तब तक मै अपने घर के पास पहुच चुकी थी। इसके बाद कभी विक्रमबाबू से ना ही मुलाकात हो पाई और ना ही किसी से बात।’’ क्रिष्ना ने जवाब दिया।
राजेश्वरीदेवी ने पुछा,” क्रिष्ना, आज सब कुछ बता ही दो मुजे।“
बाद मे क्रिष्ना ने बताया वो कुछ ऐसा था :
जब वो अपने घर पहुची तब तक वो होश मे आ चुकी थी उसने स्वस्थ होकर ही घर मे कदम रखा था। एक दिन अचानक उसे पता चला की वो मा बन ने वाली है। फॉरिन मे कोई इस बात को ज़्यादा अहेमियत नही देता था और वैसे भी उस घर मे वो स्वतंत्र थी तो उसे वैसे तो कोई परवा नही थी लेकिन बच्चे के जन्म के बाद 1 साल तो उसने ऐसे तैसे कर के काट लिया। बाद मे उसे एहसास हुवा की एक बच्चे को बाप की ज़रूरत तो है ही। वैसे भी जब उसे बंसी की चिठ्ठी से पता चला था की सुनंदा की मृत्यु हो चुकी है (हाला की बंसी ने ये खबर करीब एक साल के बाद लिखे थे) तो उसने सोचा की शायद विक्रम अब उस से घर संसार बसने के मूड मे आ जाये और उसके बच्चे को बाप मिल जाये। इसी सोच मे बच्चा भी डेढ़ साल का हो चुका था और उसने वापस आने का फ़ैसला लिया और किसी को बीना बताये अकेली वापस आ गयी। लेकिन यहा आने के बाद बंसी के मूह से कुछ कुछ कहानी सुनकर उसे लगा की विक्रम का कुछ ठिकाना नही, अभी भी वो वैसा ही है जैसा पहले था और शायद वो फिर हवस पूरी करने का कोई और मार्ग खोलेगा तो क्रिष्ना ने तय कर लिया की अब वो आजीवन अकेली रहेगी, ना ही तो विदेश जायेगी और यही रहकर बच्चे की देखभाल करेगी।
राजेश्वरीदेवी ने इस हिम्मतवाली लड़की को अपने गले से लगा लिया, क्रिष्ना की आँखो मे वैसी ही चमक थी जो बता रही थी की किसी भी मुश्किल का सामना करने से अब वो डरती । है। लेकिन किस्मत मे क्या लिखा है वो कौन जाने और जाने कहा ???
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इधर राजेश्वरीदेवी ने क्रिष्ना का दिल खोल दिया था और उधर किशोरीलाल और बंसी वकिलबाबू के पास पहुचे और वहा वकिलबाबू महर्षि सेन ने दोनो को बिठाया। महर्षि सेन उचे कद के और करीब 60 साल के अनुभवी वकील थे। रजवाड़े के टाइम से वो जोधपुर के महाराजा के वकील थे और विक्रम के पिताजी गंगाधरबाबु की सुज़ बुज़ पॉलिटिक्स मे अच्छी थी इसीलिए मि. सेन गंगाधर का कार्य भी किया करता था। फिर तो मि. सेन गंगाधर के वकील ही बन चुके थे।
विक्रम के करतूत देखकर गंगाधर ने ही उसके खर्चे के लिए नारायणप्रसाद (किशोरीलाल के पिताजी) को ट्रस्टी जैसा बना दिया था। अब जब नारायणप्रसाद ही नही रहे तो विक्रम के खर्चे का क्या, यही बातचीत करने के लिये मि. सेन ने किशोरीलाल को मिलने बुलाया था।
बंसी और किशोरीलाल दोनो वहा पहुचे और जो बातचीत मि. सेन से हुई उस बात मे कुछ ऐसी बात थी:
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गंगाधर ने जो शर्त रखी थी की विक्रम के बारे मे बंसी जो भी रिपोर्ट करे उसके आधार पर ही नारायणप्रसाद की स्वीकृति के बाद ही विक्रम को खर्चे के लिये निश्चित रकम मिलेगी। किंतु अगर किसी वजह से नारायणप्रसाद भी ज़िंदा ना हो तो क्या किया जाये?
यही इसी बात पर तो गंगाधर की दीर्घदृष्टि कम कर गयी थी। इसी अग्रीमेन्ट, करार मे एक ऐसा क्लॉज़ भी था की अगर किसी वजह से नारायणप्रसाद की नॅचुरली मृत्यु हो गयी तो विक्रम के खर्चे की पूरी ज़िम्मेवारी Advocate मि. सेन की हो जायेगी और अगर नारायणप्रसाद की मृत्यु आक्सिडेंट या नॅचुरली नही हुई तो फिर वो अग्रीमेन्ट मे जहा भी नारायणप्रसाद का नाम होगा वहा अपने आप ही किशोरीलाल का नाम हो जायेगा।
गंगाधर की दुरंदेशी इतनी अच्छी थी की विक्रम कही भी कुछ नही कर पाता था। गंगाधर को अपने बेटे पर सुई जितना भी विश्वास नही था। शायद दौलत के लिए विक्रम कल कुछ भी कर जाये और नारायणप्रसाद का खून कर बैठे तो क्या होगा, यही एक वजह थी की नारायणप्रसाद के बाद पूरी ज़िम्मेवारी या तो मि. सेन के पास रहेगी या तो वो जिम्मेदारी किशोरीलाल के पास चली जाती है।
अब सवाल ये उठता था की नारायणप्रसाद का अग्निसंस्कार हो चुका था। उसकी मृत्यु नॅचुरली है या नही, ये कोई नही जानता था। क्यूकी मि. सेन भी नारायणप्रसाद के मृत्यु के बारे मे इतना ही जानते थे जितना किशोरीलाल। तो विक्रम की दौलत का नेक्स्ट ट्रस्टी कौन ? मि. सेन या किशोरीलाल ?
नारायणप्रसाद की मृत्यु के दो महीने बाद जब विक्रम इस केस के बारे मे मि. सेन के पास आया तो मि. सेन ने उसे बताया था की समस्या ये है की अब ट्रस्टी वो रहेंगे या किशोरीलाल इसका फ़ैसला किशोरीलाल के जोधपुर आने से पहले नही हो सकता था। विक्रम ने जब बताया की अब तो नारायणप्रसाद रहे ही नही तो बंसी मेरे बारे मे किसको बतायेगा और बंसी का इस हवेली मे क्या काम है? लेकिन यहा भी गंगाधर की दूरंदेशी काम कर गयी थी। उसी अग्रीमेन्ट मे एक ऐसा भी क्लॉज़ था की अगर बंसी की ऍक्सीडेन्ट या नॅचुरली ना हो वैसे तरीके से मृत्यु हो जाये या फिर लापता हो जाये या खुद विक्रम से नाराज़ होकर चला जाये तो सारी जायदाद किसी अनाथ आश्रम, स्कूल या कही भी डोनेट कर दी जायेगी। डोनेट किस को करनी है उसका फ़ैसला मि. सेन और नारायणप्रसाद/किशोरीलाल, दोनो मिलकर करेंगे। इसका मतलब बंसी को आजीवन जीवतदान मिल चुका था। बंसी को आजीवन उसका कार्य करते रहना ही था।
मि. सेन ने और भी बताया की इस चर्चा के बाद 2 साल तक विक्रम ने कुछ नही किया, ना ही तो इसके बारे मे किशोरीलाल को खबर की और ना ही मि. सेन के पास दूसरी बार आया। इसिलिये कोइ खर्चा
पास नही हुवा है और वो अपना खर्चा कैसे कर रहा है ये भी किसी को मालूम नही था।
इतनी बात कहकर मि. सेन रुके और सब ने साथ मिलकर चाय पी। फिर मि. सेन ने बंसी को कहा,’’बंसी एक और बात है जो मूज़े तुजे कहनी होगी।’’
बंसी ने कहा,’’जी वकिलबाबू,कहिए।’’
मि। सेन,’’आइ आम सॉरी बंसी लेकिन फॉरिन मे तुम्हारी बहन जो मेरे रिलेटिव के यहा रहती थी। वो कही चली गयी है। हमने बहुत कोशिश की लेकिन 10 दिन से उसका कोई पता नही है। मै तुम्हारे पास आनेवाला ही था। लेकिन तुम किशोरीबाबू को लेकर यहा आ गये।’’ इतना कहेकर मि. सेन ने लाचार नज़रो से नीचे देख लिया।
किशोरीलाल बोल उठा,’’मि. सेन क्रिष्ना यही पर है और मै आनेवाला था इसीलिए बंसी ने 7 दीनो से किसी को नही बताया था। वो यहा क्यू भाग आई है ये हम नही जानते लेकिन मेरी वाइफ अभी उसके पास है और हमे अभी पता लग जायेगा। और हा उसकी गोद मे विक्रम का बच्चा भी है ऐसा क्रिष्ना कहती है। शायद इसीलिये वो वहा से भागी है।’’
‘’ओह नो, और ये बात आप अब मूज़े बता रहे हो मि. किशोरीबाबु। मै तो उसे ढूंढते परेशान हो गया।’’ वकील ने अपनी चेर पर आराम से सास लेते हुए कहा और फिर आगे बोले,’’चलो जो हुवा अच्छा ही हुवा। क्रिष्ना यहा है और सेइफ है। अब आगे हमे क्या चाहिये वरना इसमे एक और भी क्लॉज़ है।’’
किशोरीलाल और बंसी दोनो एकदुसरे की तरफ देखने लगे और सुन ने के लिये बेताब हुवे।
वकील मि. सेन ने बताया,’’अगर फॉरिन मे क्रिष्ना की मृत्यु हो जाती है और अगर इसमे विक्रम का नाम आता है या कोई ऐसा व्यक्ति जिसका क्रिष्ना के मौत मे हाथ रहा हो और दूर दूर तक विक्रम का कनेक्शन उस आदमी का साथ हो तो अपने आप ही बंसी आधी संपति का मालिक हो जायेगा।’’
बंसी देखता ही रह गया और कहा,’’वकील बाबू ये क्या वसीयत है या कोई फिल्मी कहानी है?’’
मि. सेन,’’बंसी ये गंगाधर बाबू और नारायणप्रसाद दोनो की हाजरी मे अग्रीमेन्ट हुई है। इसे गंगाधरबाबू की वसीयत कहो या अंतिम इच्छा। लेकिन इसी अग्रीमेन्ट के आधार पर हम अभी तक शायद ज़िंदा है। क्यूकी इसमे ये भी लिखा है की अगर मेरी या मेरे परिवार मे से किसी एक की भी क़त्ल या मर्डर या जो नॅचुरली ना हो ऐसी मौत हो जाये तो ये अग्रीमेंट की एक कॉपी कही और भी रखी गयी है जो ऑटोमॅटिकली दूसरे ही दिन इंडिया के सारे न्यूज़ पेपर मे एकसाथ पब्लिश हो जायेगी। ये सबकुछ विक्रमसाहब जानते है इसीलिए खामोश है और जो भी आप बोलोगे वैसा उसको करना ही पड़ेगा।’’
किशोरीलाल ने पुछा,’’वकिलबाबू इस अग्रीमेंट से ईश्वर ना करे लेकिन अगर हम मे से कोई भी फायदा उठा सकता था या है। मान लो मेरे पिताजी की नियत खराब हो गयी, या फिर आप की, या बंसी की या मेरी तो क्या होगा इसका कोई क्लॉज़ है इसमे?’’
मि. सेन ने हसकर जवाब दिया,’’यस वेरी गुड पॉइंट किशोरीबाबु, जी हा इसका भी इलाज गंगाधरबाबू ने इसमे रखा है, आप ने पुछ लिया वरना मूज़े बताने से इनकार किया गया था और ये क्लॉज़ भी आप के फादर नारायणप्रसाद के जोधपुर से जाने के बाद इंक्लूड किया गया था।’’
थोड़ा रुककर फिर मि. सेन ने बताया की,’’अगर आप मे से कोई एक ने भी इस अग्रीमेन्ट की वजह से ब्लॅकमेल या फायदा उठाने की कोशिश की तो लिखा है की विक्रमबाबू की पूरी संपत्ति का ट्रस्टी अपने आप ही मै बन जाता हू, जब कि मूज़े आप की बदनीयत को साबित करनी होती। और अगर मैने भी यहा हाथ साफ करने की कोशिश की तो सब से पहले आप सब को रास्ते मे से हटाना होगा और वो भी नॅचुरल डेथ हो ऐसा साबित करना होता। मान लो वैसा भी मैने कर लिया तो भी गंगाधरबाबू ने लिखा है की कोई भी नॅचुरल मौत या दुर्घटना की पक्की तलासी ली जाये और केस सी.बी.आइ. को दिया जाये और इस अग्रीमेन्ट की एक कॉपी कोई ऐसे व्यक्ति के पास भी है जिसका मूज़े भी कोई पता नही और वो व्यक्ति डाइरेक्ट प्राइम मिनिस्टर या प्रेसीडेन्ट ऑफ इंडिया को लिखकर केस बना सकता है। हो सकता है की ऐसा कोई आदमी ही ना हो सिर्फ़ हम सब को डराने के लिये लिखा गया हो और ये भी हो सकता है की सच मे ऐसा कोई आदमी है की कोई भी एक्सिडेन्ट के बाद सी.बी.आइ. इंकवायरी हो सकती है। गंगाधरबाबू की बात साफ है की कोई भी इस अग्रीमेन्ट मे बचना नही चाहिये। दूसरा ऐसा करने के लिये मैने ही उसे अड्वाइस दिया था। तो मेरा तो कोई सवाल ही नही उठता की मै अपना मन मैला करू। वरना मै आप को यहा बुलाता भी नही, डाइरेक्ट विक्रमबाबू से सेटल्मेन्ट कर के कुछ भी हिस्सा ले जाता। और ऐसे ही आप लोगो मे से भी कोई दौलत के भूखे नही है जो कुछ ग़लत कर सके। इन शॉर्ट ये गंगाधरबाबू ने विक्रमबाबू को हमे सौप दिया था की इसको किसी भी तरह से समालना है।’’
इतना कहकर मि. सेन ने बातचीत ख़तम की। तीनो थोड़ी देर चुप रहे। मि. सेन ने पुछा,’’बोलिये किशोरीबाबु आगे क्या करना है, नारायणप्रसाद की डेथ् नॅचुरली है या एक्सिडेंट या मर्डर ये हम मे से कोई नही जानता और जानता है तो सिर्फ़ विक्रमबाबू जो हमे अगर सच बताये तो भी कितना ट्रस्ट करना ये सोचने की बात है।’’
पहेले तो कोइ कुछ बोला ही नही मगर 10 मीनीट के बाद किशोरीलाल ने कहा,’’वकिलबाबू ये गंभीर मामला है, मूज़े भी आज पता चला है की ऐसा कोई अग्रीमेन्ट है, मेरे पिताजी ने मूज़े कभी ऐसा कुछ नही बताया। अब सब से पहले तो पिताजी के मौत के बारे मे थोड़ी जानकारी लेनी ही होगी बाद मे ही फ़ैसला किया जा सकता है और अग्रीमेन्ट के मुताबिक आप ही अभी तो ट्रस्टी हो सकते हो। अगर मेरे पिताजी की डेथ नॅचुरल है तो फिर मेरा नाम आयेगा तो मै ज़रूर वापस आप के पास आ जाउंगा। लेकिन फिलहाल तो इस अग्रीमेंन्ट को ऐसे ही रखिए।’’
मि. सेन ने जवाब दिया,’’जैसे मैने सोचा था वैसा ही जवाब आप ने दिया है। तो तय रहा किशोरिबबू जब तक आप की तरफ से कोई जवाब नही आयेगा तब तक अग्रीमेन्ट ऐसे ही रहेगा और बंसी तुजे विक्रमबाबू की खबर अब हम दोनो को देनी होगी ठीक है किशोरीबाबु?’’
‘’बिल्कुल सही ये ज़िम्मेवारी अब हम तीनो को निभानी ही होगी, क्यूकी अब तो मेरे पिताजी की भी ये आखरी इच्छा हो गयी और मै मरते दम तक इसे निभाना चाहूँगा।’’ किशोरीलाल ने जवाब दिया।
फिर दोनो हाथ मिलकर वहा से निकल पड़े। बंसी और किशोरीलाल वापस क्रिष्ना और राजेश्वरीदेवी के पास आये, उसी वक़्त क्रिष्ना ने अपनी बात ख़तम की थी और लिपट के अपनी भाभी के कंधो पे थी। जब किशोरीलाल और बंसी अंदर आये तो सब साथ मे बैठ गये। राजेश्वरीदेवी ने मुस्कुराकर इशारो से समजया की काम हो गया है और फिर क्रिष्ना के सामने मुस्कुरकर देखा और बोली,’’ क्रिष्ना तुजे हवेली पे वापस आना ही होगा।’’
कोई कुछ बोले इसके पहले किशोरीलाल बोल उठा,’’इसका मतलब वीकी विदेश गया था ना?’’
बंसी की हाजरी मे क्रिष्ना ने नज़र नीचे डाल दी और राजेश्वरीदेवी ने मौन से हा कहा। बंसी खड़ा हुवा और अपनी बहन के सिर पर हाथ रखा और पुछा,’’ क्रिष्ना हम को काहे नही बताया ? क्या बाबा (विक्रम) ने तारे साथ ज़बरदस्ती की थी ?’’
राजेश्वरीदेवी ने बीच मे बंसी को कहा,’’बंसीभैया इसका कोई जवाब नही है। ना ही क्रिष्ना की कोई भूल है और ना ही आप विक्रमभैया को दोषी कह सकते हो। ये सब संजोग का खेल है जिस का सब से बड़ा शिकार सिर्फ़ क्रिष्ना हुई है। ये मासूम बच्चे की तरफ देखकर कोई और सवाल मत कीजियेगा वरना क्रिष्ना एक बड़े भाई के सामने कुछ नही बोल पायेगी।’’
क्रिष्ना नीची नज़र कर के रोने लगी। बंसी ने उसके सिर पर हाथ फिराया और उसका गला भी भर आया। मुश्किल से आवाज़ निकली,’’गंगाधरबाबू का सपना टूट गया भैया, इसको विदेश भेजा तो बाबा वहा भी पहुच गये। इसकी किस्मत ही शायद खराब है की अच्छा बाप नही मिला, मेरे जैसा भाई मिला जो बड़ा होकर भी इसकी इज़्ज़त नही बचा पाया और ये किस्मत की मारी मारी फिर रही है।’’
किशोरीलाल खड़ा हुवा और बंसी को आलिंगन मे ले लिया । बोला,’’नही बंसी तेरी निमकहिलाली का ज़रूर कुछ अच्छा फल इस बच्चे को मिलेगा, जो तपस्या तू और क्रिष्ना कर रहे हो इसका अंजाम ज़रूर कुछ अच्छा होगा, ईश्वर पे श्रद्धा रखो, वो ज़रूर कुछ अच्छा करेगा । अब तो ईश्वर से प्रार्थना करो की क्रिष्ना की गोद मे विक्रम की एक और लड़की हो।’’
इतना सुनते ही क्रिष्ना चौक उठी और उसने नज़रे उठाकर सब के सामने देखना शुरू किया। लेकिन उसे आश्चर्य इस बात का हुवा की बंसी के चेहरे पर भी खुशी की ज़लक थी। वो कुछ समज नही पाई की ये लोग फिर उसे विक्रम के हवाले क्यू कर रहे है ?
जब राजेश्वरीदेवी समज गयी की क्रिष्ना को कौन सी परेशानी है तो वो मुस्कुराकर बोली,’’अरे पहले क्रिष्ना को तो सबकुछ बताओ, ये तो विक्रमभैया से दुबारा मिलना ही नही चाहती।’’
फिर राजेश्वरीदेवी ने गिरनारवाले बाबा की भविष्यवाणी की बाते बताई और जब क्रिष्ना को पता चला की अगर विक्रम उसे अपना लेता है और उसकी नेक्स्ट औलाद लड़की है तो ज़रूर कुछ ईश्वर का खेल है की वो फॉरिन से अकेली यहा तक भाग आई है। क्रिष्ना ने भगवान को याद कर के अपनी आँखे बंध कर ली।
क्रिष्ना अब शायद मानसिक रूप से तैयार थी विक्रम से शादी करने के लिये अगर विक्रम तैयार हो तो, लेकिन विक्रम को समजना और समजाना दोनो ही कठिन था और अगर वो भी मान लेता है और अगर इनदोनो की दूसरी संतान लड़की हुई तो फिर क्या गिरनारवाले बाबा की भविष्यवाणी सत्य साबित होगी? क्या विक्रम के बारे मे उसके पिताजी के विचार थे वो सही थे या विक्रम सही? और सब से अहम बात विक्रम को
क्या दर्द था की वो शांती से बैठ नही सकता था और कांड के कांड किये जा रहा था ? ये कोई नही जानता था लेकिन सिर्फ़ एक सूपर नॅचुरल पावर ही जानती थी की सच क्या है और आगे क्या होनेवाला है और जाने कहा???
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Seema Priyadarshini sahay
07-Feb-2022 04:40 PM
बहुत खूबसूरत भाग
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PHOENIX
07-Feb-2022 05:52 PM
Thanks a lot
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Shrishti pandey
08-Jan-2022 04:38 PM
Very nice sirr
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PHOENIX
08-Jan-2022 11:19 PM
धन्यवाद।
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🤫
07-Jan-2022 03:52 PM
🙆🙆🙆, ओह माय गॉड, क्या कहानी लिखी है आपने भैया, कृष्णा ने वाकई खूब झेला है। बंसी की भी अपनी कहानी है।इसका भी क्या किस्सा है। विल की भी अपनी कहानी है। क्या गूंथ दिया है आपने स्टोरी में
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PHOENIX
07-Jan-2022 05:51 PM
😊आप तो वैसे भी कुछ और इस कहानी के बारे में जान चुकी है। जी है बंसी की भी अपनी एक छोटी स्टोरी है। धन्यवाद एंजेल इस कहानी पर बने रहने के लिये।
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